घंटाकर्ण देवता की जात – टिहरी जिले के इस गाँव मे होता है रात्री जागरण – चार पहर की पूजा

द्वारि बुड़कोट की घंटाकर्ण जात्रा
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उत्तराखंड के जिला टिहरी गढ़वाल के घनसाली तहसील अंतर्गत द्वारी ग्रामसभा के बुड़कोट गाँव मे श्री घंटाकर्ण देवता की जात्रा हर पाँच साल बाद आयोजित होती है । पूर्व निर्धारित इस तिथि पर ऊंची पहाड़ी पर स्थित घंटाकर्ण मंदिर मे देवता के नाम का रात जागरण होता है । चार पहर की पुजा होती है इन चारो पहर मे घंटाकर्ण देव, विनसर, भगवान नागराज और माँ दुर्गा अपने पश्वा पर अवतरित होती है और भक्तो के प्रश्नो का जबाब देती है , उनके दैनिक जीवन मे आ रही समस्याओ के समाधान भी बताते है ।
ऊंची पहाड़ी पर स्थित घंटाकर्ण मंदिर मे कड़कती शर्दी मे रात गुजारना किसी तपस्या से कम नहीं है , ऐसे मे जहा आम लोग ऊनी वस्त्रो से नीचे से ऊपर तक खुद के शरीर को ढके होते है वही देवता के पश्वा रात के चारो पहर ठंडे पानी से स्नान कर नंगे वदन भक्तो के बीच मौजूद रहते है । चौथे पहर की पुजा के बाद प्रसाद वितरण होता है और फिर ब्रह्म भोज के बाद जात सम्पूर्ण होती है | इस जात मे गैरोला परिवार के साथ आसपास के दरजनों गाव से भक्त मौजूद रहते है इसके अलावा ससुराल गई बेटियाँ जिन्हे ध्याणी कहा जाता है, बड़ी तादाद मे घंटाकर्ण की जात के लिए अपने मायके आती है । पलायन के बाद भले ही परिवार गाँव छोडकर चले गए हो किन्तु इस देवपुजन के लिए लोग हर हाल मे गाँव आते है ।
जानकार बताते है कि घंटाकर्ण वीर अभिमन्यु का रूप है जो महाभारत मे श्री कृष्ण की लीला के अनुसार युद्ध मे वीर गति को प्राप्त हुए थे और भगवान विष्णु के लोक मे विराजमान हो गए थे। देश के चार धाम मे प्रमुख बद्रीनाथ मे भी श्री हरी विष्णु के प्रथम गण के रूप मे द्वार पर भगवान घंटाकर्ण की प्रतिमा स्थापित है | इतिहासकर बताते है कि पूर्व मे दिल्ली के इंद्रप्रस्थ मे भगवान घंटाकर्ण कि पूजा होती थी किन्तु यवनों के बढ़ते प्रभाव के बाद देव भी ऊंचे हिमालय की तरफ चले गए \ भगवान घंटाकर्ण के उत्तराखंड् आने की दर्जनो किम्बदंतियाँ मौजूद है उत्तराखंड के गढ़वाल मे सजवान परिवार को भगवान घंटाकर्ण को लेकर आने का जिक्र आता है उसके बाद चमोली परिवार द्वारा भुलवस घंटाकर्ण के लिंग के टुकड़े किए जाने का भी जिक्र आता है जो अलग अलग स्थानो पर स्थापित हो गए थे |