सद्गुरू शिष्य को भक्ति का ‘सर्वोच्च शिखर’ प्रदान करतेः भारती

देहरादून । ‘रूद्रिपाठ’ करते हुए हुआ कार्यक्रम का शुभारम्भ दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की निरंजनपुर शाखा के सभागार में रविवार को साप्ताहिक सत्संग-प्रवचनों तथा मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का संस्थान के वेद-मंदिर के वेदपाठियों द्वारा दिव्य रूद्रिपाठ का गायन करते हुए वातावरण को पावन किया गया।
कार्यक्रम में सद्गुरू आशुतोष महाराज की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती ने अपने मर्मस्पर्शी प्रवचनों के द्वारा संगत को बताया कि सद्गुरूदेव की भूमिका एक माँ की तरह हुआ करती है, एक ऐसी माँ जो अपनी संतान को उच्चतम संस्कार प्रदान कर समाज में ऊँचे आदर्शों की संस्थापना कर पाती है। भक्ति मार्ग पर असंख्य कठिनाईयां, परेशानियां तथा अनेक तरह की परीक्षाएं भी आती हैं। गुरू प्रदत्त भक्ति मार्ग में शिष्यों को परीक्षाओं की विकट परीस्थितियों से तो गुजरना ही पड़ता है। लकड़ी गीली हो या सूखी आग में तो जाना ही पड़ता है। फिर! परीक्षाएं कहां नहीं हैं? क्या संसार की साधारण उपलब्धियों में, विद्यार्थी के विद्याध्ययन में क्या परीक्षाएं नहीं होती? फिर! अध्यात्म तो सर्वोच्च उपलब्धियों का जनक है, भला इसमें सदगुरू द्वारा क्या परीक्षाएं न होंगी? जो शिष्य मनोयोग से इस पराविद्या में गहन अध्ययन करता है, जो सदा अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहता है, पढ़ाई पर ही पूरा ध्यान देकर जो शिष्य पूरी तैयारियां किया करता है, जो दिन-रात अपना सम्पूर्ण ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित कर परीक्षाओं की तैयारी रखता है वह परीक्षा भवन में बिना किसी भय, बिना किसी परेशानी के जाता है और सफल होता है, कीर्तिमान रचता है। महापुरूषों ने सत्संग को एक माध्यम कहा है, पूरी पढ़ाई करने का। सत्संग सदगुरू की कोचिंग क्लासेज ही तो हुआ करती हैं। जो साधक विद्यार्थी मतवातर इसके प्रत्येक सत्र में भाग लेता है, प्राणपन से पढ़ाई को आत्मसात करता है, गुरू के निर्देशों का परिपालन किया करता है और पूर्णतः-अक्षरशः अपने गुरू की आज्ञा को शिरोधार्य कर पढ़ता है तो वह पास ही नहीं होता बल्कि अव्वल आता है। लक्ष्य जितना बड़ा होगा संघर्ष भी उसी अनुपात में बड़ा ही होगा। अध्यात्म पथ पर चलने के लिए अपार आत्मिक बल चाहिए। माह का प्रथम रविवार होने पर सदा की भांति आश्रम में गुरू का लंगर (भंडारा) वितरित किया गया।

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