विरासत में संगबोरती दास ने शास्त्रीय संगीत और पं. राजेंद्र गंगानी ने कथक नृत्य से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

देहरादून । डॉ भीमराव अंबेडकर के विशाल प्रांगण में आयोजित किए जा रहे विरासत महोत्सव 2024 के दूसरे दिन की शुरुआत सुबह के समय स्कूली बच्चों द्वारा क्राफ्ट वर्कशॉप के आकर्षक आयोजन में मिट्टी से बर्तन बनाने के साथ शुरू हुई। विरासत महोत्सव के शानदार आयोजन में सुबह होते ही श्री गुरु राम राय पब्लिक स्कूल बालावाला तथा सेंट जूड्स स्कूल के छात्र-छात्राओं ने अपने अध्यापकों के साथ उत्साह के साथ आयोजित विरासत महोत्सव में अपने कदम रखे। क्राफ्ट वर्कशॉप में इन स्कूली बच्चों ने दिल्ली के उत्तम नगर से आए कुम्हार 64 वर्षीय दुलीचंद से मिट्टी के बर्तन बनाने का हुनर सीखा। छोटे-छोटे आकर्षक एवं खूबसूरती से भरे मिट्टी के बर्तन,गमले और दिए इत्यादि बनाने में माहिर दिल्ली के कुम्हार दुलीचंद से बड़े जोश और उत्साह के साथ स्कूली बच्चों कुमारी सलोनी, मोर्कल आर्य एवं अन्य बच्चों ने मिट्टी के बर्तन बनाने सीखे। दिल्ली के उत्तम नगर के मूल निवासी दुलीचंद ने भी मासूम स्कूली बच्चों को मिट्टी के बर्तन बनवाकर सिखाने में पूरी दिलचस्पी दिखाई। बच्चों ने भी उत्साह पूर्वक अपने-अपने नाजुक हाथों से चाचा दुलीचंद से मिट्टी के बर्तन बनाने का अनोखा हुनर सीखा।
सभी बच्चे चाचा दुलीचंद से मिट्टी के बर्तन सीख कर बेहद खुश हुए। कुम्हार दुलीचंद कहते हैं कि वह बचपन से ही अपने मूल निवास उत्तम नगर में मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करते चले आ रहे हैं। यह कार्य उनके द्वारा अपने फूफा से करीब 55 वर्ष पूर्व सीखा था, तभी से लेकर वे मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को आगे बढ़ाते आ रहे हैं। अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर 64 वर्षीय कुम्हार दुलीचंद ने बताया कि हालांकि वह दिल्ली के ही मूल निवासी है और वहीं पर बर्तन बनाने का कार्य करते चले आ रहे हैं, लेकिन दिल्ली सरकार से उनके द्वारा कोई भी मदद मांगने पर भी नहीं मिली। जिसका उन्हें बेहद दुख है और रहेगा। रीच संस्था द्वारा आयोजित किए जा रहे विरासत महोत्सव 2024 की इस जश्न-ए-धूम में आज के कार्यक्रमों में आम जनमानस की खासी दिलचस्पी आयोजित किए गए कार्यक्रमों में देखी गई। दोपहर बाद ओएनजीसी के अग्निशमन की टीम द्वारा आमजन को अचानक लगने वाली आग से बचाव के विषय में बताया गया। लोगों को जागरूक करने एवं जागरूक रहने के साथ ही सावधानी बरतने के साथ-साथ अपना बचाव करने के टिप्स दिए गए, ताकि समय पर संभावित आग लगने वाली किसी भी दुर्घटना अथवा बड़ी दुर्घटना से बचा जा सके। इस दौरान टीम के सदस्यों ने अग्निशमन के यंत्रों का प्रयोग करने हेतु प्रशिक्षण के कुछ टिप्स भी दिए प् ओएनजीसी अग्निशमन की इस टीम के सदस्यों शौर्य सिंह, सचिन सिंह भंडारी, हरेंद्र सिंह नगरकोटी, दीपक सिंह तथा गब्बर सिंह गुसाईं ने यह भी बताया गया कि जब आग लगती है, तो उससे किस तरह से बचाव बिना घबराए हुए करने चाहिए। तत्पश्चात विरासत महोत्सव की शाम की फिजा में विरासत महोत्सव का नए आकर्षक अंदाज में दूसरे दिन के आयोजन की श्रृंखला में बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुभारंभ हुआ। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सुनैना प्रकाश अग्रवाल, उपाध्यक्ष, विरासत आयोजन समिति और माननीय न्यायमूर्ति बी.एस.वर्मा, उत्तराखंड उच्च न्यायालय मौजूद रहे।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की पहली प्रस्तुति में गोवा से आए हुए कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दी, श्रोताओं एवं आज की विरासत के गवाह बने प्रत्येक मेहमान के दिलों को छू लेने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत गोवा के पोंडा से आए 12 कलाकारों के समूह श्री गुरु कलामंडल द्वारा एक शानदार प्रस्तुति के साथ हुई। महेश गावड़ी के नेतृत्व में इस मंडली ने संगीत और नृत्य के माध्यम से पारंपरिक गोवा कला रूपों का प्रदर्शन किया। समूह के अन्य प्रमुख सदस्यों में विराज, करण, प्रसाद और कई अन्य शामिल रहे,जिन्होंने गोवा की हृदय की गहराइयों को छू लेने वाली लोक परंपराओं के सार को शक्ति प्रदान की। सांस्कृतिक श्रृंखला के अगले क्रम में एल्विश गौस म्यूजिक एन्सेम्बल द्वारा एक शानदार संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। बहुभाषी गायक और अंतरराष्ट्रीय कलाकार एल्विश गौस के नेतृत्व में बैंड ने दर्शकों के लिए एक आकर्षक अनुभव बनाने के लिए विभिन्न भाषाओं और संगीत शैलियों को मिलाकर भावपूर्ण धुनों के साथ सांस्कृतिक माहौल को और भी हृदय की गहराई तक पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। सायंकाल की यह शानदार शाम 16 प्रतिभाशाली कलाकारों के समूह केपेमचिम किरनम के प्रदर्शन के साथ हुई, जिसका नेतृत्व एल्विश गौस ने भी किया। इस समूह ने पारंपरिक गोवा संगीत और नृत्य की समृद्ध टेपेस्ट्री के माध्यम से गोवा की जीवंत संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया,जो क्षेत्र की विशिष्ट विरासत को दर्शाता है। लयबद्ध ताल और जीवंत नृत्य चालों के संयोजन ने एक विद्युतीय वातावरण बनाया, जिसने दर्शकों को गोवा की उत्सव भावना की सच्ची झलक पेश की। इन तीन विविध प्रदर्शनों के साथ, विरासत के दूसरे दिन गोवा की जीवंत और रंगीन संस्कृति का जश्न हृदय की गहराइयों से मनाया गया। दूसरे दिन की विरासत में कई अलग-अलग अंदाज देखने को मिले हैं। आयोजकों को भी यहां प्रस्तुत हो रहे लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां खूब ही भा रही हैं। सांस्कृतिक संध्या की श्रृंखला में जारी इस महफिल में हर किसी कलाकार का अलग ही अंदाज आकर्षित रूप में देखने को मिल रहा है, जिनका जिक्र लगातार किया जा रहा है। यहां गोयनकरंचेम डियाज एक ऐसा संगठन है जो कोंकणी भाषा,संस्कृति, इतिहास और विरासत जैसे गोवा के आम लोकाचार को बढ़ावा देता है और उनकी रक्षा करता है। गोवा में मुख्य लोक नृत्य फुगड़ी और ढालो व कुनबी हैं। एल्विस गोज एक प्रसिद्ध गोवा गायक, संगीतकार, गीतकार, संगीत निर्देशक हैं, जिन्हें गोवा के श्मांडो प्रिंसश् के रूप में जाना जाता है। गोवा के खूबसूरत शहर क्यूपेम से आने वाले एल्विस गोज ने पिछले कुछ सालों में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में कई अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन किए हैं। बहुभाषी गायक और गोवा में युवा सृजन पुरस्कार को हासिल करने वाले वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित गोवा संगीत और नृत्य मंडली केपेमचिम किरनम के निर्देशक भी हैं। एल्विस गोज ने पिछले कुछ वर्षों में गोवा संगीत को दुनिया भर में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है और वे अभी भी दुनिया भर में कोंकणी और गोवा संगीत को बढ़ावा देने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने 15 अगस्त 2021 को भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हिंदी में अपनी मूल रचना श्दिल की आवाज-इंडिया भी जारी की है। विरासत महोत्सव में एल्विस गोज संगीत समूह केपेमचिम किरनम और श्री गुरु कला मंडल के साथ मिलकर गोवा की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को प्रदर्शित करने वाले व्यक्तित्व हैं, जिसमें गोवा के सार को पूर्वी और पश्चिमी दोनों संगीत प्रभावों के साथ मिलाया गया। यह समूह गोवा के लोकगीतों के साथ पॉप संगीत और विभिन्न लोकनृत्यों जैसे समय नृत्य, देखनी नृत्य, गोफ, मांडो कोर्टिंग नृत्य, डांगहर नृत्य आदि का प्रदर्शन करता रहा है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की दूसरी प्रस्तुति में संगबोरती दास द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया गया। संगबोरती ने अपने प्रदर्शन की शुरुआत राग मालकौंस में बंदिश ष्पग लगान देष् से की। उनकी अगली प्रस्तुति राग चारुकेशी, गाओ रस न हरि गुणश्श् में थी और उन्होंने राग मिश्र पथसीप में भजन ष्बाजे मुरलिया बाजेष् के साथ अपने कार्यक्रम का समापन किया। तबले पर मिथिलेश झा जी और हारमोनियम पर पारिमिता मुखर्जी ने कुशल संगत की। संगबोरती दास कोलकाता की एक होनहार युवा भारतीय शास्त्रीय गायिका हैं। वे गुरु पंडित अजय चक्रवर्ती की शिष्या हैं, जो प्रतिष्ठित आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी के वरिष्ठ विद्वान के रूप में उनके संरक्षण में शिक्षा ले रही हैं। वह अकादमी के कनिष्ठ गुरु ब्रजेश्वर मुखर्जी से भी प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। संगबोरती ने अपने माता-पिता से सीखना शुरू किया और 2003 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित संगीत अकादमी श्रुतिनंदन में संगीत की शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया, जहाँ उन्होंने 2017 में आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी में शामिल होने से पहले विधान मित्रा, अभिजीत मुखर्जी, चंदना चक्रवर्ती, अनोल चटर्जी से प्रशिक्षण लिया हैं। एक नियमित कलाकार होने के अलावा, संगबोरती वर्तमान में श्रुतिनंदन में गायन प्रशिक्षक भी हैं। वे २०१६ में चेतला मुरारी स्मृति संगीत सम्मेलन संगीत प्रतियोगिता कोलकाता में ख्याल और ठुमरी में प्रथम पुरस्कार की प्राप्तकर्ता हैं।संगबोरती भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत २०१९ की राष्ट्रीय छात्रवृत्ति की प्राप्तकर्ता भी हैं। आज की अंतिम प्रस्तुति जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी द्वारा कथक की थी। साथ में तबले पर पंडित फतेह सिंह गंगानी, हारमोनियम पर विनोद गंगानी, सारंगी पर नफीज अहमद और दीप्ति गुप्ता द्वारा पधंत गाया गया। प्रदर्शन की शुरुआत पंचाक्षर स्तोत्र से हुई, जिसमें जयपुर घराने की अनूठी विशेषताओं को तीन पारंपरिक लयबद्ध पैटर्न के माध्यम से प्रदर्शित किया गया, इसके बाद मध्य लय, द्रुत लय और घुंघरू की गूंजती ध्वनियाँ बारिश की लय का सार प्रस्तुत करती हैं। पं. राजेंद्र गंगानी एक भारतीय कथक नर्तक हैं जो अपनी अभिनव शैली और तकनीकी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं। वे जयपुर घराने की कथक शैली के अग्रणी प्रतिपादकों में से एक हैं। उन्होंने कथक नर्तक के रूप में अपनी यात्रा 4 वर्ष की आयु में शुरू की, वे महान कथक प्रतिपादक कुंदन लाल गंगानी के पुत्र और जयपुर घराने के मशाल वाहक हैं। पं. राजेंद्र गंगानी ने कथक केंद्र, दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कई समूह रचनाओं और नृत्य नाटकों की कोरियोग्राफी की है, साथ ही लीला-वर्णन, राग विस्तार, त्रिबंधी, सरगम, झलक, सृजन, कविता कृति, महारास, परिक्रमा आदि जैसी कई विषयगत वस्तुओं का निर्माण भी किया है। कथक के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए, गंगानी को 2003 में भारत के राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। वह उन चंद भारतीयों में से एक हैं जिन्होंने लंदन के क्वीन एलिजाबेथ हॉल में एकल प्रदर्शन किया है।

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