भगवान ‘अनन्य’ भाव से की गई प्रार्थना अवश्य सुनतेः भारती

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के अंतर्गत आयोजित रविवारीय साप्ताहिक सत्संग-प्रवचन एवं संगीतमय भजन-संकीर्तन कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने सहभागिता की। कार्यक्रम का शुभारम्भ दिव्य ज्योति वेद मंदिर के वेद पाठियों द्वारा वेद मंत्रों के मंगलमय उच्चारण के साथ हुआ। इसके पश्चात संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत मनभावन एवं मधुर भजनों ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भावविभोर हुई संगत प्रभु-प्रेम में सराबोर हो उठी।
सत्संग की मुख्य वक्ता साध्वी विदुषी अरूणिमा भारती (शिष्या, सद्गुरु आशुतोष महाराज) रहीं। साध्वी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा कि मानव शरीर भगवान का मंदिर है। यदि मनुष्य इसे न समझे तो यह शैतान का घर बन जाता है। संगति का सीधा प्रभाव जीवन पर पड़ता है। जिस प्रकार संग के अनुरूप रंग चढ़ता है, उसी प्रकार सत्संग से जीवन में दिव्यता का संचार होता है।
उन्होंने आगे कहा कि यह मानव जन्म अत्यंत दुर्लभ है। भई प्राप्त मानुख देहुरिया, गोबिंद मिलन की यही तेरी बरिया। अर्थात् मनुष्य को यही अवसर मिला है कि वह प्रभु से मिलन कर सके। अन्य सांसारिक कार्य क्षणिक हैं, किंतु सत्संग एवं प्रभु-भक्ति ही मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य है।
साध्वी जी ने गज और ग्राह की कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि जब हाथी संकट में फँसा, तो सभी संबंधी उसका साथ छोड़कर चले गए। परंतु प्रभु को पुकारते ही भगवान ने अवतरित होकर उसकी रक्षा की। इससे स्पष्ट है कि सच्चा भक्त जब प्रभु का स्मरण करता है, तो ईश्वर सदैव उसकी रक्षा करते हैं और उसे सहारा प्रदान करते हैं।
अपने उद्बोधन में साध्वी विदुषी सुभाषा भारती ने कहा कि प्रेम के वशीभूत होकर भगवान सहज ही भक्त के समीप आ जाते हैं। गुरु की पावन कृपा से ही शिष्य के भीतर निस्वार्थ एवं निष्काम प्रेम का उदय होता है। गुरु और शिष्य का संबंध केवल ज्ञान का ही नहीं, बल्कि आत्मिक प्रेम और सम्पूर्ण व्यक्तित्व-निर्माण का आधार होता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार रंगरेज नया रंग चढ़ाने से पहले कपड़े का पुराना रंग छुड़ाता है, उसी प्रकार सद्गुरु भी अपने शरणागत शिष्यों को सत्संग, साधना और परीक्षाओं के माध्यम से आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़ारते हैं। पुरानी कुरीतियों व विकारों को तोड़कर नया व्यक्तित्व निर्मित करते हैं। यही कारण है कि गुरु की कृपा से शिष्य का जीवन प्रकाशमय हो समाज में अनुकरणीय योगदान देने योग्य बनता है।
कार्यक्रम के अंत में भजन संकीर्तन के पश्चात भंडारे का भी आयोजन किया गया, जिसमें सभी श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण कर आध्यात्मिक आनंद प्राप्त किया।

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